Hindi News 18 :- एक कहावत अक्सर सुनने को मिलती है – कस्तुरी कुंडलि बसै, मृग ढूंढे बन माहि | दरअसल कस्तूरी बहुत सुंगध बिखेरने वाली होती है, जो नर हिरण के अंदर होती है | आइए जानते हैं ये कैसे बनती है और इससे क्या किया जाता है |
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कस्तूरी को दुनिया का बेहतरीन और बहुमूल्य सुगंधित पदार्थ माना जाता है | कहा जाता है कि पुरानी सर्दी, जुकाम, निमोनिया इसके सूंघने ठीक हो जाता है | लेकिन इसको सूंघने से नाक से खून भी बहने लगता है | कस्तूरी का इस्तेमाल खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है | साथ ही सुगंध और परफ़्यूम के क्षेत्र में भी |
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कस्तूरी मृग का रंग भूरा होता है | इस भूरी त्वचा पर रंगीन धब्बे होते हैं | इस मृग के सींग नहीं होते | नर की बिना बालों वाली पूंछ भी होती है | इसके पिछले पैर अगले पैरों की तुलना में लम्बे होते हैं | इसके जबड़े में दो दांत पीछे की और झुके होते हैं | इन दांतों का उपयोग यह अपनी सुरक्षा और जड़ी-बूटी को खोदने में करता है |
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कस्तूरी केवल नर हिरण में ही पायी जाती है | ये मादा हिरण में नहीं होती | जब हिरण युवावस्था में होता है तो ये ज्यादा मात्रा में होती है | एक हिरण से करीब 25 से 30 ग्राम कस्तूरी मिलती है | हालांकि इस चक्कर में हिरण का खूब शिकार भी किया जाता है | कस्तूरी मृग को ‘हिमायलन मस्क डियर’ के नाम से भी जाना जाता है | इसका वैज्ञानिक नाम ‘मास्कस क्राइसोगौ’ है |
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कस्तूरी के बारे में हम सभी लोगों ने जरूर सुना है | क्या आपको मालूम है कि ये कस्तूरी कहां होती है, कैसे बनती है और इसका क्या इस्तेमाल है | सुगंध की दुनिया में ये बेशकीमती चीज मानी जाती है | कस्तूरी वयस्क नर हिरण में पाई जाती है |
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कस्तूरी में एक तीक्ष्ण गंध होती है | ये नर कस्तूरी मृग के पीछे गुदा क्षेत्र में स्थित एक ग्रंथि से प्राप्त होती है | इसे प्राचीन काल से इत्र के लिए एक लोकप्रिय रासायनिक पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है | ये दुनिया भर के सबसे महंगे पशु उत्पादों में एक है | वैसे कस्तूरी का व्यापार अब दुनिया में अवैध हो चुका है |
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19वीं सदी के अंत तक प्राकृतिक कस्तूरी का इस्तेमाल इत्र में बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है | हालांकि अब इसे कृत्रिम तौर पर भी बनाया जाने लगा है | इसके इस्तेमाल से चीन में पारंपरिक दवाएं बनाई जाती हैं | कस्तूरी हिरण नेपाल, भारत, पाकिस्तान, तिब्बत, चीन, साइबेरिया, और मंगोलिया में पाये जाते हैं | दुखद पक्ष ये है कि कस्तूरी को प्राप्त करने के लिए, हिरण को मार डाला जाता है |
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हालांकि कस्तूरी जैसी गंध वाली ग्रंथि दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया की कस्तूरी बतख (बिज़ियुरा लोबाटा), कस्तूरी बैल, कस्तूरी बीटल (अरोमिया मोस्काटा), अफ्रीकी सीविट (सीविटिकटीस सीविटा), कस्तूरी कछुआ, सेंट्रल अमेरिका के मगरमच्छ और कई अन्य जानवरों में भी पाया जाता है | मगरमच्छों में कस्तूरी ग्रंथी की दो जोड़ी होती हैं, एक जोड़ी जबड़े के किनारों पर और दूसरी जोड़ी क्लोअका में होती है | कस्तूरी ग्रंथियां सांपों में भी पाई जाती हैं |
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उत्तराखण्ड राज्य में पाए जाने वाले कस्तूरी मृग प्रकृति के सुंदरतम जीवों में एक हैं | कस्तूरी का उपयोग औषधि के रूप में दमा, मिर्गी, निमोनिया आदि की दवाएं बनाने में होता है | कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी मदहोश कर देने वाली खुशबू के लिए प्रसिद्ध है |
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ये हिरण की नाभि के पास एक थैली में होती है | अंडाकार, 3-7 |5 सेंटीमीटर लंबी और 2 |5-5 सेंटीमीटर चौड़ी होती है | इसकी महक हिरण को दीवाना बनाती रहती है और वो समझ ही नहीं पाता कि ये सुगंध कहीं और से बल्कि उसके अंदर से ही निकल रही है | मतवाला होकर वो इसको सारे वन में ढूंढता रहता है |
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इसके कानों की जबरदस्त श्रवणशक्ति इन्हें विश्व के सबसे चौकन्ने जीवों में एक बनाती है | इनके शरीर के रंग में बहुत विविधता पायी जाती है | पेट और कमर का निचला किस्सा अमूमन सफ़ेद ही होता है, शेष हिस्सा कत्थई भूरे रंग का होता है | शरीर का ऊपरी हिस्सा सुनहरा, हल्का पीला या नारंगी रंग का भी हुआ करता है | इन मृगों की कमर और पीठ पर रंगीन धब्बे होते हैं | इनके शरीर पर घने बाल रहते हैं | इन बालों का निचला आधा भाग सफेद होता है | सीधे और कठोर बाल छूने में बहुत मुलायम महसूस होते हैं |